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पत्र 3

हमारी बस्ती में मुझसे बड़े लड़कों की एक टोली है। मुझे ये लड़के बहुत अच्छे लगते हैं। मैं भी उन जैसा बनना चाहता हूँ। कभी-कभी वे मुझे उनके साथ घूमने-फिरने देते हैं तो ऐसा लगता है कि मैं भी उनका यार हूँ और उनके जैसा हूँ। पिछले हफ़्ते उन्होंने मुझे उनके ख़ास अड्डे पर आने दिया। वहाँ दारू-शारू, सिगरेट, नशा, सब हो रहा था। वे चाहते थे कि मैं भी यह सब करूँ। मैं डर गया और मैंने ‘‘ना’ बोल दिया। वे मेरा मज़ाक उड़ाकर मुझे ‘बच्चा’ और ‘डरपोक’ कहने लगे। आखि़र उन्हें ख़ुश रखने के लिए मैंने सिगरेट का एक कश लिया। छि! कितना गंदा स्वाद था। खाँस-खाँस कर जान आधी हो गई। पर सबने मुझे शाबाशी दी और पीठ थपथपाई। ऐसा लगा कि जैसे मेरी मूँछें निकल आई हों! एक तरफ़ मेरा मन कहता है कि शराब-सिगरेट की आदत गंदी है, तो दूसरी तरफ़ मैं उनकी टोली में शामिल होना चाहता हूँ। मैं क्या करूँ?

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 28. Juni 2025 11:36:55]


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