आप सब करीब चौदह-पंद्रह वर्ष के होंगे। क्या आप जानते हैं कि आप जीवन के किस चरण में हैं? इसे किशोरावस्था कहते हैं। किशोरावस्था जीवन का महत्त्वपूर्ण समय होता है। यह एक पुल के समान है जो बचपन और प्रौढावस्था को जोड़ता है। इस समय में हमारे शरीर में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव होते हैं। इस अवस्था में हमारा शरीर प्रजनन, यानी बच्चे पैदा करना और उनका पालन-पोषण करने की क्षमता हासिल कर रहा है। ये बदलाव लड़कियों के शरीर में 8 वर्ष से 18 वर्ष, और लड़कों में 10 से 20 वर्ष की उम्र के दौरान आते हैं।
इन बदलावों की शुरूआत हमारे दिमाग़ में होती है। दिमाग़ की श्लेष्मा ग्रंथी (पिट्यूटरी ग्लैन्ड) कुछ रसायन पैदा करने लगती है जिससे हमारे शरीर और भावनाओं में बदलाव होने लगते हैं। हमारे पूरे दिमाग़ में काफ़ी बदलाव होने लगते हैं। दिमाग़ के कुछ हिस्से जो पहले सक्रिय न थे, वे अब काम करने लगते हैं। हमारी तर्क-शक्ति और विवेक-बुद्धि पहले से तीव्र हो जाती है। एक तरह से देखा जाए, तो हमारा दिमाग एक नए व्यक्ति की रचना करने लगता है।
किशोरावस्था में हमारे शरीर और सोच में हो रहे परिवर्तनों के साथ-साथ, हमारी भावनाओं में भी काफ़ी हलचल होने लगती है। किशोरावस्था में सामान्य रूप से महसूस की जानेवाली कुछ भावनाएँ हैंः लड़कों का लड़कियों के प्रति और लड़कियों का लड़कों के प्रति आकर्षण; परिवार से अलगाव और दोस्त या सहेलियों से गहरा लगाव; सभी नियमों की तरफ़ विद्रोह का भाव; गहरी उदासी और अति आनंद की भावनाओं के बीच झूलना; यह इच्छा रखना कि हमारी उम्र के लोग हमें पसंद करें और हमें अपनाएँ, इत्यादि।
किशोरावस्था काफ़ी उलझन पैदा कर सकती है। किशोर-किशोरियों को अक्सर ऐसा महसूस होता है कि बड़े उन्हें समझ ही नहीं सकते और उनकी राय को सम्मान नहीं देते। बड़ों को भी ये बातें परेशानी में डाल देती हैं क्योंकि उन्हें भी पता नहीं चलता कि किशोरों को बच्चा समझें या बड़ा। वे समझ नहीं पाते कि उनकी हर वक़्त बदलती भावनाओं से कैसे निपटें और उनके साथ कैसा व्यवहार करें।
[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 29. September 2025 15:19:45]
आप सब करीब चौदह-पंद्रह वर्ष के होंगे। क्या आप जानते हैं कि आप जीवन के किस चरण में हैं? इसे किशोरावस्था कहते हैं। किशोरावस्था जीवन का महत्त्वपूर्ण समय होता है। यह एक पुल के समान है जो बचपन और प्रौढावस्था को जोड़ता है। इस समय में हमारे शरीर में कई महत्त्वपूर्ण बदलाव होते हैं। इस अवस्था में हमारा शरीर प्रजनन, यानी बच्चे पैदा करना और उनका पालन-पोषण करने की क्षमता हासिल कर रहा है। ये बदलाव लड़कियों के शरीर में 8 वर्ष से 18 वर्ष, और लड़कों में 10 से 20 वर्ष की उम्र के दौरान आते हैं।
इन बदलावों की शुरूआत हमारे दिमाग़ में होती है। दिमाग़ की श्लेष्मा ग्रंथी (पिट्यूटरी ग्लैन्ड) कुछ रसायन पैदा करने लगती है जिससे हमारे शरीर और भावनाओं में बदलाव होने लगते हैं। हमारे पूरे दिमाग़ में काफ़ी बदलाव होने लगते हैं। दिमाग़ के कुछ हिस्से जो पहले सक्रिय न थे, वे अब काम करने लगते हैं। हमारी तर्क-शक्ति और विवेक-बुद्धि पहले से तीव्र हो जाती है। एक तरह से देखा जाए, तो हमारा दिमाग एक नए व्यक्ति की रचना करने लगता है।
किशोरावस्था में हमारे शरीर और सोच में हो रहे परिवर्तनों के साथ-साथ, हमारी भावनाओं में भी काफ़ी हलचल होने लगती है। किशोरावस्था में सामान्य रूप से महसूस की जानेवाली कुछ भावनाएँ हैंः लड़कों का लड़कियों के प्रति और लड़कियों का लड़कों के प्रति आकर्षण; परिवार से अलगाव और दोस्त या सहेलियों से गहरा लगाव; सभी नियमों की तरफ़ विद्रोह का भाव; गहरी उदासी और अति आनंद की भावनाओं के बीच झूलना; यह इच्छा रखना कि हमारी उम्र के लोग हमें पसंद करें और हमें अपनाएँ, इत्यादि।
किशोरावस्था काफ़ी उलझन पैदा कर सकती है। किशोर-किशोरियों को अक्सर ऐसा महसूस होता है कि बड़े उन्हें समझ ही नहीं सकते और उनकी राय को सम्मान नहीं देते। बड़ों को भी ये बातें परेशानी में डाल देती हैं क्योंकि उन्हें भी पता नहीं चलता कि किशोरों को बच्चा समझें या बड़ा। वे समझ नहीं पाते कि उनकी हर वक़्त बदलती भावनाओं से कैसे निपटें और उनके साथ कैसा व्यवहार करें।