×

कभी-कभी, देरी से उठने जैसा छोटा निर्णय, एक आदत बन जाता है जिसे सुधारना कठिन होता है। शालू ने कभी न सोचा होगा कि कोचिंग में एक छुट्टी करना एक आदत बन जाएगा। कभी-कभी हम छोटे-छोटे लालचों में पड़ जाते हैं और हमारा ध्यान उन बातों पर रहता है जो हम उसी समय चाहिए। शालू का ध्यान अपनी नींद पर था। उस क्षण वह सोना चाहती थी। उसने यह नहीं सोचा कि उसके लिए ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्या है – नींद लेना या फिर खेल-प्रतियोगिता के लिए चुने जाना।

 

इसलिए निर्णय लेने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए। वे बातें हैं

 

  • मेरे निर्णयों के क्या परिणाम होंगे?

  • जो मुझे अभी मिल रहा है वह ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है या जो मैं बाद में पाना चाहती/ता हूँ वह अधिक महत्त्वपूर्ण है?

  • मुझ पर और दूसरों पर इस निर्णय का क्या प्रभाव होगा?

  • क्या मैं यह निर्णय सिर्फ इसलिए ले रही/रहा हूँ क्योंकि मैं दूसरों की तरह बनना चाहती/ता हूँ?

  • क्या मैं यह निर्णय दूसरों की राय के आधार पर ले रही/रहा हूँ? क्या मैंने सभी तथ्य जान लिए हैं?

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 24. Februar 2018 20:44:18]


×