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हम देखते हैं कि जिन निर्णयों का असर लंबे समय तक रहता है, वे जल्दबाज़ी में नहीं लिए जा सकते। ऐसे निर्णय लेने के लिए अच्छी तरह सोचना चाहिए और पूरा समय लेना चाहिए।  ऐसे महत्त्वपूर्ण निर्णयों को पलटा नहीं जा सकता। ऐसा ही कुछ मनीष के साथ हुआ। उसने अपने निर्णय के बारे में ज़्यादा सोचे बिना स्कूल छोड़ दिया। वह दूसरे लड़के की तरह बनना चाहता था, जिसने पैसा कमाना शुरू कर दिया था। गराज में कई वर्षों तक काम करने के बाद, अब उसके लिए फिर से पढ़ाई शुरू करना और किसी कॉलेज या पोलिटेकनिक में प्रवेश लेना बहुत कठिन था।   

 

कई बार कुछ छोटे निर्णयों का परिणाम भी बड़ा हो सकता है, अगर ऐसे निर्णयों को अक्सर दोहराया जाए और यदि वे निर्णय हमारे महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों के सही न हों। ऐसे निर्णयों के बारे में और जानने के लिए शालू का उदाहरण पढ़िए।

 

शालू को बैडमिंटन खेलना पसंद था इसलिए उसने सुबह बैडमिंटन  की कोचिंग में जाना शुरू कर दिया। वह जिला और राज्य चैम्पियनशिप में भाग लेना चाहती थी। एक दिन सुबह उसे उठने में बड़ा आलस आ रहा था। उस दिन वह बैडमिंटन कोचिंग में नहीं गई। धीरे-धीरे, देर से उठना उसकी आदत बन गई और वह अक्सर कोचिंग में छुट्टी करने लगी। अब उसके प्रशिक्षक ने भी उसे सिखाने में रुचि दिखाना कम कर दिया क्योंकि वह नियमित रूप से नहीं आ रही थी। इसके परिणाम स्वरूप शालू का चयन जिला या राज्य स्तर की खेल-प्रतियोगिता में नहीं हुआ। दूसरे खिलाड़ी जो उसके जितना अच्छा नहीं खेलते थे, उनका चयन हो गया क्योंकि वे नियमित रूप से अभ्यास करते थे। शालू को बहुत बुरा लगा क्योंकि उसमें दूसरे खिलाड़ियों से ज़्यादा प्रतिभा थी फिर भी वह चुनी नहीं गई।
[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 21. Juni 2024 17:19:24]


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