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हाँ, यह ठीक रहेगा” स्वप्ना ने कहा और अपने पिता की साइकिल उठाने लगी। “चलें?” स्वप्ना राधा से बोली और उसे पीछे वाली सीट पर बैठाने लगी।

राधा को मज़ा आ रहा था। तेज़ हवा में उसके बाल उड़ रहे थे। स्वप्ना तेज़ी से पैडल चला रही थी। राधा के मन में बहुत-से ख्याल आ रहे थे। उसने स्वप्ना के परिवार के बारे में बहुत कुछ सुना था, पर जो उसने देखा वह उससे बिल्कुल अलग था।

जैसे ही वे स्कूल पहुँचे, स्वप्ना ने ज़ोर से साइकिल के ब्रेक लगाए। वे देर से पहुँचे थे और उन्हें हैडमास्टर के ऑफिस में जाने को कहा गया। राधा डर के मारे जैसे काँप रही थी। स्वप्ना ने हिम्मत रखी और हैडमास्टर को सब सच बता दिया और राधा का पैर भी दिखाया। हैडमास्टर ने उन्हें जाने दिया। हैडमास्टर के ऑफिस से निकलते हुए राधा और स्वप्ना ने चैन की साँस ली और एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराने लगे। राधा ने स्वप्ना से कहा कि साइकिल पर बैठ कर उसे बहुत मज़ा आया।

क्या तुम मुझे साइकिल चलाना सिखाओगी?” राधा ने पूछा।

क्यों नहीं, बिल्कुल” स्वप्ना ने कहा।

जैसे ही दोनों कक्षा में घुसे, राधा ने मीना को देखा और मीना ने नज़रें चुरा ली। राधा उसे अचरज से देखती रह गई।

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[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 22. November 2024 03:51:31]


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