जब राधा घर पहुँची तो रात हो चुकी थी। उसकी माँ चारपाई पर बैठी थी और उसके पिता कमरे में टहलते हुए कह रहे थे “मैंने समझाया था उन लोगों को, कि हमारे कुएँ को हाथ न लगाएँ। जाकर तालाब से पानी लें या अपना कुआँ खोद लें। अगर उनका कुआं सूख गया तो हम क्या करें। पर तुम्हें उसका रवैया देखना चाहिए था। कहने लगा, कि अब सब लोग बराबर हैं और उसे हमसे कोई डर नहीं लगता। कैसे घटिया लोग हैं।” राधा के पिता गुस्से में थे। राधा ने धीरे से अपने पिता से पूछा, “क्या आप उनमें से किसीको जानते हैं? क्या आप उनके घर गए हैं या कभी उनके साथ खाना खाया है?” उसके पापा ने भौंहें चढ़ाकर उसे देखा और कहा, “नहीं, उनमें से किसी के साथ भी मेरी जान-पहचान नहीं है। जब मैं उनसे मिलना भी नहीं चाहता, तो मैं उनके साथ खाना क्यों खाऊँगा! तुमने ऎसा बेहुदा सवाल क्यों पूछा?” राधा ने शर्मिन्दा होते हुए जवाब दिया, “कोई खास बात नहीं है, बस ऎसे ही....”
राधा चुपचाप खाना खाने बैठ गई। उसकी माँ बोली, “उसकी बेटी भी उसके जैसी ही है। मैंने उसे गाँव भर में घंटी बजा-बजा कर साइकिल चलाते देखा है। कहीं बड़े-बूढ़े बैठे हैं, सड़क पर इतने आदमी हैं, पर उसे किसी का लिहाज नहीं। लड़को के साथ ऐसे हँसती बोलती है, जैसे लड़की नहीं लड़का हो। लड़की को अपनी जगह पता होनी चाहिए। राधा! तुम उसके साथ तो नहीं रहती न?”
“नहीं, बिलकुल नहीं” राधा हड़बड़ाते हुए बोली।“रहना भी मत, वरना उसके जैसी ही बन जाओगी” राधा की माँ ने कहा।“मैं तो मीना के साथ रहती हूँ” राधा, माँ को शांत करने के लिए बोली। राधा ने स्वप्ना के पिता को कभी नहीं देखा था। पर उसके माता-पिता अक्सर उनकी, उनके समाज और मोहल्ले की बुराई करते थे। न सिर्फ उसके माता-पिता, बल्कि गाँव के इस हिस्से के सभी लोग स्वप्ना के समाज के लोगों के बारे में ऐसा ही सोचते थे। वे अक्सर उनके लिए गालियाँ या गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। राधा एक-दो बार ही उनके इलाके में गई थी और उसे वह पसंद नहीं आया था। उसे लगा कि वहाँ रहने वाले लोगों में ही कुछ कमी थी और वे बाकी गाँव वालों जैसे नहीं थे।
राधा चुपचाप खाना खाने बैठ गई। उसकी माँ बोली, “उसकी बेटी भी उसके जैसी ही है। मैंने उसे गाँव भर में घंटी बजा-बजा कर साइकिल चलाते देखा है। कहीं बड़े-बूढ़े बैठे हैं, सड़क पर इतने आदमी हैं, पर उसे किसी का लिहाज नहीं। लड़को के साथ ऐसे हँसती बोलती है, जैसे लड़की नहीं लड़का हो। लड़की को अपनी जगह पता होनी चाहिए। राधा! तुम उसके साथ तो नहीं रहती न?”
“नहीं, बिलकुल नहीं” राधा हड़बड़ाते हुए बोली।
“रहना भी मत, वरना उसके जैसी ही बन जाओगी” राधा की माँ ने कहा।
“मैं तो मीना के साथ रहती हूँ” राधा, माँ को शांत करने के लिए बोली। राधा ने स्वप्ना के पिता को कभी नहीं देखा था। पर उसके माता-पिता अक्सर उनकी, उनके समाज और मोहल्ले की बुराई करते थे। न सिर्फ उसके माता-पिता, बल्कि गाँव के इस हिस्से के सभी लोग स्वप्ना के समाज के लोगों के बारे में ऐसा ही सोचते थे। वे अक्सर उनके लिए गालियाँ या गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। राधा एक-दो बार ही उनके इलाके में गई थी और उसे वह पसंद नहीं आया था। उसे लगा कि वहाँ रहने वाले लोगों में ही कुछ कमी थी और वे बाकी गाँव वालों जैसे नहीं थे।
[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org on 24. September 2025 03:16:31]
जब राधा घर पहुँची तो रात हो चुकी थी। उसकी माँ चारपाई पर बैठी थी और उसके पिता कमरे में टहलते हुए कह रहे थे “मैंने समझाया था उन लोगों को, कि हमारे कुएँ को हाथ न लगाएँ। जाकर तालाब से पानी लें या अपना कुआँ खोद लें। अगर उनका कुआं सूख गया तो हम क्या करें। पर तुम्हें उसका रवैया देखना चाहिए था। कहने लगा, कि अब सब लोग बराबर हैं और उसे हमसे कोई डर नहीं लगता। कैसे घटिया लोग हैं।” राधा के पिता गुस्से में थे। राधा ने धीरे से अपने पिता से पूछा, “क्या आप उनमें से किसीको जानते हैं? क्या आप उनके घर गए हैं या कभी उनके साथ खाना खाया है?” उसके पापा ने भौंहें चढ़ाकर उसे देखा और कहा, “नहीं, उनमें से किसी के साथ भी मेरी जान-पहचान नहीं है। जब मैं उनसे मिलना भी नहीं चाहता, तो मैं उनके साथ खाना क्यों खाऊँगा! तुमने ऎसा बेहुदा सवाल क्यों पूछा?” राधा ने शर्मिन्दा होते हुए जवाब दिया, “कोई खास बात नहीं है, बस ऎसे ही....”
राधा चुपचाप खाना खाने बैठ गई। उसकी माँ बोली, “उसकी बेटी भी उसके जैसी ही है। मैंने उसे गाँव भर में घंटी बजा-बजा कर साइकिल चलाते देखा है। कहीं बड़े-बूढ़े बैठे हैं, सड़क पर इतने आदमी हैं, पर उसे किसी का लिहाज नहीं। लड़को के साथ ऐसे हँसती बोलती है, जैसे लड़की नहीं लड़का हो। लड़की को अपनी जगह पता होनी चाहिए। राधा! तुम उसके साथ तो नहीं रहती न?”
“नहीं, बिलकुल नहीं” राधा हड़बड़ाते हुए बोली।“रहना भी मत, वरना उसके जैसी ही बन जाओगी” राधा की माँ ने कहा।“मैं तो मीना के साथ रहती हूँ” राधा, माँ को शांत करने के लिए बोली। राधा ने स्वप्ना के पिता को कभी नहीं देखा था। पर उसके माता-पिता अक्सर उनकी, उनके समाज और मोहल्ले की बुराई करते थे। न सिर्फ उसके माता-पिता, बल्कि गाँव के इस हिस्से के सभी लोग स्वप्ना के समाज के लोगों के बारे में ऐसा ही सोचते थे। वे अक्सर उनके लिए गालियाँ या गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। राधा एक-दो बार ही उनके इलाके में गई थी और उसे वह पसंद नहीं आया था। उसे लगा कि वहाँ रहने वाले लोगों में ही कुछ कमी थी और वे बाकी गाँव वालों जैसे नहीं थे।
राधा चुपचाप खाना खाने बैठ गई। उसकी माँ बोली, “उसकी बेटी भी उसके जैसी ही है। मैंने उसे गाँव भर में घंटी बजा-बजा कर साइकिल चलाते देखा है। कहीं बड़े-बूढ़े बैठे हैं, सड़क पर इतने आदमी हैं, पर उसे किसी का लिहाज नहीं। लड़को के साथ ऐसे हँसती बोलती है, जैसे लड़की नहीं लड़का हो। लड़की को अपनी जगह पता होनी चाहिए। राधा! तुम उसके साथ तो नहीं रहती न?”
“नहीं, बिलकुल नहीं” राधा हड़बड़ाते हुए बोली।
“रहना भी मत, वरना उसके जैसी ही बन जाओगी” राधा की माँ ने कहा।
“मैं तो मीना के साथ रहती हूँ” राधा, माँ को शांत करने के लिए बोली। राधा ने स्वप्ना के पिता को कभी नहीं देखा था। पर उसके माता-पिता अक्सर उनकी, उनके समाज और मोहल्ले की बुराई करते थे। न सिर्फ उसके माता-पिता, बल्कि गाँव के इस हिस्से के सभी लोग स्वप्ना के समाज के लोगों के बारे में ऐसा ही सोचते थे। वे अक्सर उनके लिए गालियाँ या गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते थे। राधा एक-दो बार ही उनके इलाके में गई थी और उसे वह पसंद नहीं आया था। उसे लगा कि वहाँ रहने वाले लोगों में ही कुछ कमी थी और वे बाकी गाँव वालों जैसे नहीं थे।