इंसान किसी भी परिस्थितिक तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण जैविक घटक होता है और वह दूसरे जैविक व अजैविक घटकों को नियंत्रित करता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि परिस्थिति-विज्ञान (ecology) पढ़ाते समय इंसानों की भूमिका और विभिन्न परिस्थितिक तंत्रों से जो सहयोग और सेवाएं हमें मिलती हैं उनकी चर्चा शायद ही कभी की जाती है। लेकिन बच्चों को यह पढ़ाना बहुत जरूरी है कि हम जीवन की बड़ी सी तस्वीर का सिर्फ एक हिस्सा ही हैं और जीवित रहने के लिए हम विभिन्न परिस्थितिक तंत्रों से प्राप्त जैविक व अजैविक घटकों पर निर्भर करते हैं। हाल के शोध यह दिखाते हैं कि वे बच्चे जो मनुष्य और उनके वातावरण में मौजूद दूसरे जीवों व निर्जीव चीज़ों से उनके बीच के संबंध को जाने बिना ही बड़े होते हैं वे अक्सर नेचर डेफ़िसिट डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण की जरूरत को समझने में अक्षम होते हैं।
गतिविधि 1 जिसका शीर्षक है ‘जैविक संसाधन और भोजन’ का उद्देश्य यह जानकारी देना है किइ हमारे भोजन के लिए कितने तरह के जीवों की जरूरत होती है। इसके अलावा, सुबह से रात तक हम जितने जैविक व अजैविक संसाधनों को इस्तेमाल करते हैं, टीचर उनके बारे में क्लास में एक चर्चा का आयोजन करवा सकते हैं। मिसाल के लिए, दांत साफ़ करने के लिए जो टूथब्रश या नीम की टहनी उपयोग में लाई जाती है उससे शुरुआत की जा सकती है, उसके बाद मुंह धोने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है, पोंछने के लिए तौलिया, चाय/कॉफ़ी बनाने का सामान आदि। अंत में रात को सोने के लिए जो बिस्तर उपयोग में आता है उसका नाम आ सकता है। टीचर बच्चों से कह सकती हैं कि वे इन सभी सामानों के स्रोत और उसके बनने की प्रक्रिया के बारे में पता लगाएं। इस तरह की कोशिश से बच्चों को उन ढेरों संसाधनों के बारे में समझने का मौका मिलेगा जिसका इस्तेमाल हम हर रोज़ करते हैं और जिन परिस्थितिक तंत्रों से ये मिलते हैं उनके संरक्षण की जरूरत को भी वे समझेंगे।
[Contributed by administrator on 10. Januar 2018 21:32:56]
टीचर के लिए नोट
इंसान किसी भी परिस्थितिक तंत्र में सबसे महत्वपूर्ण जैविक घटक होता है और वह दूसरे जैविक व अजैविक घटकों को नियंत्रित करता है। दुर्भाग्य की बात यह है कि परिस्थिति-विज्ञान (ecology) पढ़ाते समय इंसानों की भूमिका और विभिन्न परिस्थितिक तंत्रों से जो सहयोग और सेवाएं हमें मिलती हैं उनकी चर्चा शायद ही कभी की जाती है। लेकिन बच्चों को यह पढ़ाना बहुत जरूरी है कि हम जीवन की बड़ी सी तस्वीर का सिर्फ एक हिस्सा ही हैं और जीवित रहने के लिए हम विभिन्न परिस्थितिक तंत्रों से प्राप्त जैविक व अजैविक घटकों पर निर्भर करते हैं। हाल के शोध यह दिखाते हैं कि वे बच्चे जो मनुष्य और उनके वातावरण में मौजूद दूसरे जीवों व निर्जीव चीज़ों से उनके बीच के संबंध को जाने बिना ही बड़े होते हैं वे अक्सर नेचर डेफ़िसिट डिसऑर्डर का शिकार हो जाते हैं। ऐसे व्यक्ति प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग और संरक्षण की जरूरत को समझने में अक्षम होते हैं।
गतिविधि 1 जिसका शीर्षक है ‘जैविक संसाधन और भोजन’ का उद्देश्य यह जानकारी देना है किइ हमारे भोजन के लिए कितने तरह के जीवों की जरूरत होती है। इसके अलावा, सुबह से रात तक हम जितने जैविक व अजैविक संसाधनों को इस्तेमाल करते हैं, टीचर उनके बारे में क्लास में एक चर्चा का आयोजन करवा सकते हैं। मिसाल के लिए, दांत साफ़ करने के लिए जो टूथब्रश या नीम की टहनी उपयोग में लाई जाती है उससे शुरुआत की जा सकती है, उसके बाद मुंह धोने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जाता है, पोंछने के लिए तौलिया, चाय/कॉफ़ी बनाने का सामान आदि। अंत में रात को सोने के लिए जो बिस्तर उपयोग में आता है उसका नाम आ सकता है। टीचर बच्चों से कह सकती हैं कि वे इन सभी सामानों के स्रोत और उसके बनने की प्रक्रिया के बारे में पता लगाएं। इस तरह की कोशिश से बच्चों को उन ढेरों संसाधनों के बारे में समझने का मौका मिलेगा जिसका इस्तेमाल हम हर रोज़ करते हैं और जिन परिस्थितिक तंत्रों से ये मिलते हैं उनके संरक्षण की जरूरत को भी वे समझेंगे।