clix - Unit 3: The Solar System and Beyond
     Help Videos
Introduction Adding Buddy Exploring Platform Exploring Units
A-  A  A+

×
×
New profile photo
×
Unit 3: The Solar System and Beyond

Select from the following:

* Use Ctrl + Click to select multiple options

Selections:

×

2.3 उपग्रह

शब्दकोष



जब कोई चीज या पिंड, उसके व किसी ग्रह के बीच पाए जाने वाले गुरूत्‍वाकर्षण बल की वजह से उस ग्रह के चारों ओर घूमता है, तो उसे ‘उपग्रह’ या उस ग्रह का ‘चंद्रमा’ कहा जाता है। बुध व शुक्र के अलावा बाकी सभी ग्रहों के उपग्रह हैं। पृथ्‍वी का सिर्फ एक उपग्रह है, मंगल के दो उपग्रह हैं। अब तक हमने बृहस्‍पति के 67 उपग्रह खोज निकाले हैं। उनमें से चार काफी बड़े हैं : गेनीमेड बुध से बड़ा है, आयओ व कैलिस्‍टो हमारे चंद्रमा से बड़े हैं और यूरोपा हमारे चंद्रमा से बस थोड़ा सा ही छोटा है। 1610 में दूरबीन यानी टेलीस्‍कोप से बृहस्‍पति को देखते वक्‍त इन चंद्रमाओं को पहली बार गैलीलियो गैलीली ने देखा (इसीलिए इन्‍हें गैलीलियन चंद्रमा भी कहा जाता है)। उन्‍होंने इनकी पहचान बृहस्‍पति के चंद्रमाओं के तौर पर की। यह पहली बार था, जब हमने यह सीखा कि दूसरे ग्रहों के भी उपग्रह होते हैं।

 

शनि के 62 उपग्रहों का अब तक पता लगाया जा चुका है (उनमें से सिर्फ एक हमारे चंद्रमा जितना बड़ा है)। अरूण के कम से कम 27 और वरूण के 14 उपग्रह हैं। इन ग्रहों से उनके इतने सारे चंद्रमा एक साथ कैसे दिखते होंगे, जरा इसकी कल्‍पना करिए ! सौर मंडल में कुछ चंद्रमाओं को देखने के लिए चित्र 1 देखें।

U3L2_Fig1

चित्र 1 : पृथ्‍वी की तुलना में सौर मंडल के कुछ उपग्रहों के आकार

 

(साभार : ब्रिकटॉप द्वारा मूल रूप से नासा से अपलोड किए गए, ड्यूऑ के द्वारा संपादित, केएफपी, टोटोबैगिन्‍स - solarsystem.nasa.gov, सार्वजनिक डोमेन, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=1641353)



कृत्रिम उपग्रह
जब इंसानों ने चीजों को किसी भी ग्रह की कक्षाओं में स्‍थापित करना शुरू किया, तब उन्‍हें कृत्रिम उपग्रह नाम दिया गया। पृथ्‍वी के चारों ओर कई कृत्रिम उपग्रह घूम रहे हैं। कृत्रिम उपग्रह मौसम का पूर्वानुमान करने, टेली व रेडियो संप्रेषण करने तथा जीपीएस (ग्‍लोबल पोजीशनिंग सिस्‍टम) में इस्‍तेमाल किए जाते हैं, जीपीएस का इस्‍तेमाल मोबाइल के जरिए हमारी मौजूदा स्थिति का पता लगाया जा सकता है। 1975 से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) कामयाबी के साथ कृत्रिम उपग्रहों को अपनी कक्षाओं में स्‍थापित करता चला आ रहा है। कृत्रिम उपग्रह को उसकी कक्षा तक ले जाकर उसे उसकी कक्षा में स्‍थापित करने के लिए रॉकेट की जरूरत पड़ती है। हमने बहुत सारे कृत्रिम उपग्रह भारतीय रॉकेटों का इस्‍तेमाल करके सतीश धवन अंतरिक्ष केन्‍द्र श्रीहरिकोटा, आंध्रप्रदेश से अपनी कक्षा में प्रक्षेपित किए हैं। उनमें से एक एस्‍ट्रोसेट नामक कृत्रिम उपग्रह 28 सितंबर, 2015 को स्‍थापित किया गया है, जिसका काम खगोलविज्ञान में शोध करना है (चित्र 2अ)। दूसरे ग्रहों के चारों ओर घूमने वाले कृत्रिम उपग्रह भी प्रक्षेपित किए गए हैं। मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) ऐसा ही एक उपग्रह है जिसे इसरो ने 5 नवंबर 2013 को प्रक्षेपित किया था।

 

चित्र 2: भारतीय कृत्रिम उपग्रह
 

U3L2_Fig4a
चित्र 2अ: एस्‍ट्रोसेट – भारत की पहली बहु तरंग वाली अंतरिक्ष वेधशाला
(स्रोत : इसरो http://www.isro.gov.in/astrosat/astrosat-gallery)

 

U3L2_Fig4b
चित्र 2ब: मंगलयान (मार्स ऑर्बिटर मिशन) पर काम करते भारतीय वैज्ञानिक

(स्रोत : इसरो http://www.isro.gov.in/pslv-c25-mars-orbiter-mission/pslv-c25-mars-orbiter-mission-gallery)