clix - Values Stories (obsolete)
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Values Stories (obsolete)

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8.2 सुनीता की उलझन

 


ps

 

मेरी तो बड़ी इच्छा है कि जिले के कॉलेज में पढ़ने जाऊँ। क्या पढ़ना है यह तो नहीं पता, पर किसी बड़ी जगह में रहने की इच्छा होती है। जब जग्गू चाचा की शादी में गए थे, तब देखा था मैंने। लड़कियाँ स्कूटर चला रही थीं और दोस्तों के साथ ठेले पर खड़े होकर पानी-पूड़ी खा रही थीं। कितना मज़ा आता होगा ना दोस्तों के साथ घूमने में। मुझे तो स्कूल से आते ही बरतन धोने पड़ते हैं। बाबू तो शाम तक खेलता रहता है। अंधेरा भी हो जाए, तो घर देर से आने पर कोई उसे डाँटता नहीं है। सारे नियम लड़कियों के लिए ही क्यों होते हैं?

 

मम्मी की बातें तो मुझे समझ ही नहीं आती। कभी डाँटकर कहती है “बड़ी होती जा रही है पर उठने-बैठने की तमीज़ नहीं है” और बाज़ार जाने की बात करूँ तो फट से बोलती है, “अभी तू इतनी बड़ी नहीं हुई कि अकेली बाज़ार जा सके।” मैं बड़ी हूँ या छोटी हूँ समझ ही नहीं आता।




[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org, richa.pandey@clixindia.org on 6. April 2018 17:13:25]