clix - Values Stories (obsolete)
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Values Stories (obsolete)

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12.2 शालू. और माँ

                                           
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वह सोने ही जा रही थी जब अचानक उसके घर की बिजली चली गई। उसने खिड़की से बाहर झाँककर देखा कि केवल उसके घर में ही बिजली नहीं थी। उसकी माँ मोमबत्ती लेकर बाहर फ्यूज़ देखने गई। फ्यूज़ उड़ गया था और वे उसे ठीक करने लगीं। अपनी माँ को फ्यूज़ लगाते देख शालू को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने माँ से पूछा, "माँ, आपने यह कैसे सीखा? यह तो पुरुषों का काम है, आपको ऐसे काम करते डर नहीं लगता!" उसकी माँ ने मुस्कराते हुए कहा," बेटा, तुम्हारे पापा काम के लिए अक्सर बाहर जाते रहते हैं। ये सब जीवन के सामान्य कौशल हैं और हम सभी को यह करना आना चाहिए। यह रूढ़िबद्ध धारणा है कि फ्यूज़ लगाना पुरुषों का काम है। एक बात और, मुझे लगता है कि ये सब काम, मैं तुम्हारे पापा से ज़्यादा अच्छी तरह कर सकती हूँ।" शालू ने तुरंत पूछा, "यह रूढ़िबद्ध धारणा क्या होती है?" उसकी माँ ने समझाया," रूढ़िबद्ध धारणा किसी व्यक्ति या किसी समूह के लिए एक सामान्य कथन जैसी होती है। कुछ ऐसी बात, जो हम पूरी जानकारी लिए बिना उनके बारे में कहने लगते हैं। यह कुछ ऎसा ही है, जैसे ठीक से सोचे-समझे बिना किसी चीज़ के बारे में कुछ कह देना। लोग आम तौर पर यह सोचते हैं कि रूढ़िबद्ध धारणाएँ सही होती हैं। परंतु रूढ़िबद्ध धारणाएँ कोई तथ्य या नियम नहीं हैं। इन्हें बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए लोग कहते हैं कि लड़के और आदमी रोते नहीं हैं। पर तुम जानती हो कि तुम्हारे पिता फिल्म का कोई भावुक दृश्य देखकर अक्सर रो पड़ते हैं। क्या इसका अर्थ है कि वे पुरुष नहीं हैं?" शालू अपनी माँ के गले लग गई और बोली, "माँ आप बिलकुल सही हैं। पुरुष भी जब भावुक होते हैं, तो वे रो सकते हैं। आज मैं विनीत पर हँस रही थी क्योंकि वह गुलाबी स्वैटर पहने था। यह भी एक रूढ़िबद्ध धारणा है कि लड़के गुलाबी रंग के कपड़े नहीं पहनते। ठीक है न?" "हाँ शालू, यह एक रूढ़िबद्ध धारणा है। अच्छा है तुम यह समझ गई। चलो सोएँ, देर हो रही है," उसकी माँ ने कहा।

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org, richa.pandey@clixindia.org on 21. März 2018 18:46:32]