clix - Values Stories (obsolete)
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Values Stories (obsolete)

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10.2 प्रकाश और लाला


प्रकाश ने अपनी थाली में रखी दो जलेबियों को देखा और माँ पर भड़का, ‘‘मेरे लिए केवल दो टुकड़े! तुम्हें तो पता है मुझे जलेबी कितनी पसंद है। मेरी थाली में और रखो।” जब तक लाला इस घर में न आया था, ज़्यादा जलेबियाँ प्रकाश को ही मिलती थीं। पर लाला को भी जलेबी  पसंद थी और माँ बड़े प्यार से उसे दे देती थी, क्योंकि वह हमारा मेहमान था। घर आए पाँच मेहमानों में सबसे छोटा था लाला; वह प्रकाश की ही उम्र का था। ‘हद हो रही है!’ प्रकाश मन ही मन बड़बड़ाया। ‘आज-कल ऐसा लगता है जैसे कि हमारा घर सिर्फ़ मेहमानों के लिए ही है। किसी दूर के रिश्तेदार की बेटी को, नौकरी के इंटरव्यू के लिए अगर बिहार से मुंबई आना ही था, तो साथ में और चार लोगों को लाने की क्या ज़रूरत थी? ऐसा पहली बार भी नहीं हुआ था। जब देखो, घर मेहमानों से भरा रहता था। कभी-कभी तो ऐसा लगता था कि बिहार का हर एक व्यक्ति हमारे घर आ चुका है। जैसे कि घर नहीं, रेल्वे स्टेशन हो!’

कल ही की बात है, उसके पसंदीदा टीवी कार्यक्रम का वक़्त हो रहा था पर लाला के पिताजी दूसरे चैनल पर ख़बरें देख रहे थे। हो गई उसके कार्यक्रम की छुट्टी! ‘‘वे तुमसे बड़े हैं और हमारे मेहमान भी। वैसे भी कोई फालतू धारावाहिक ही तो देखते हो तुम, वो कल देख लेना।’’ उसके पिताजी ने कहा। ‘‘ख़बरें भी तो रोज़ आती हैं, वह भी दिन में दस बार,’’ प्रकाश के मुँह से निकल पड़ा। जवाब में मिला एक चाँटा, मेहमानों के सामने बेइज्ज़ती और एक महिना टीवी न देखने की सज़ा!
Hindi,

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org, richa.pandey@clixindia.org on 21. März 2018 18:24:19]