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Values Stories (obsolete)

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6.1 दो अलग जीवन



कितने पास, कितने दूर . . .

किशोर घर की ओर जा रहा है। वह बहुत थक गया है। सुबह छः बजे उठ कर उसने बस्ती के नल से पानी भरा, फिर पिताजी की दाढ़ी बनाई, उन्हें नहलाया, उनके कपड़े बदले और फिर स्कूल को भागा। अब दोपहर बीतने को आई है और उसके पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
                                                Kish

समीर भी घर लौट रहा है। वह भी बहुत थका हुआ है। सुबह छः बजे उठ कर वह क्रिकेट की कोचिंग के लिए गया। घर लौट कर उसने कुछ देर पढ़ाई की और बस्ते में किताबें भर कर स्कूल के लिए निकल गया। उसे भी ज़ोरों की भूख लगी है।

किशोर सोच रहा है कि आज खाने में क्या होगा। क्या पता उसकी बहन और छोटे भाई ने उसके लिए खाना छोड़ा होगा या नहीं? शायद उसे एक-आधी रोटी या कुछ मुरमुरे ही मिल जाएँ।

समीर भी सोच रहा है कि आज रसोइये ने क्या बनाया होगा। कुछ चटपटा, जैसे समोसे या परांठे हों तो अच्छा रहेगा। रोटी-सब्ज़ी खाने में कोई मज़ा नहीं है।

                                             kish

रास्ते में किशोर ने अपने दोस्त को साइकिल पर जाते देखा। “काश मेरे पास भी एक साइकिल होती,” वह सोचने लगा। साइकिल से सब कितना आसान हो जाता - शाम के अख़बार बाँटना, स्कूल आना-जाना, बाज़ार से सामान लाना - सब कुछ। फिर शायद इतनी थकान भी न होती। रात को पाँव कितने दर्द करते हैं!

समीर की गाड़ी ट्रैफिक सिग्नल पर रूकी। उसके बगल में एक विदेशी कार खड़ी है - लाल रंग की, चमकदार, मोटे-मोटे पहियोंवाली। ‘‘गाड़ी हो तो ऐसी। क्या तेज़ चलती होगी!’’ वह सोचने लगा। अगर वह ऐसी गाड़ी में स्कूल जाए तो उसके दोस्तों की आँखें फटी रह जाएँगी!
 
                                               

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org, richa.pandey@clixindia.org on 21. März 2018 12:24:53]