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Values Stories (obsolete)

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7.4 सोनू और फलूदा

अगले दिन सोनू खेलने नहीं गया। उसे अपने परिवार के साथ एक शादी में जाना था। दुल्हा-दुल्हन को शुभकामनाएँ देने के बाद वह अपने माता-पिता के साथ खाने-पीने के स्टॉल की तरफ गया। वे शादी के स्थल पर देर से पहुँचे थे इसलिए उन्हें खाना लेने के लिए लंबी कतार में खड़े होना पड़ा। उन्होंने रोटी, सब्ज़ी, दाल और चावल खाए। लंबी कतार में खड़े होकर सोनू थक चुका था और फिर से कतार में नहीं जाना चाहता था। पर उसे अपना मनपसंद फलूदा खाना था। उसने देखा कि उसकी बड़ी बहन अल्का कतार में खड़ी थी और उससे फलूदा लाने का आग्रह किया। अल्का अपने लिए चाउ मिन ले आई और फलूदा लाना भूल गई। यह देखकर सोनू ने कहा, “अरे! मेरा फलूदा कहाँ है?” यह सुनकर अल्का चिढ़ गई और उसने कहा, “फलूदा कितना मीठा और चिपचिपा होता है और ऊपर से उसमें गुलाबी-सा शरबत डाल देते हैं। छि.. तुम ऎसी चीज़ कैसे खा सकते हो! तुम चाउ मिन खा कर देखो ना? यह हल्का-सा मीठा, चटपटा और तीखा होता है। इससे अच्छा खाना तो कोई हो ही नहीं सकता।” फलूदा न मिलने की वजह से सोनू निराश था और वह अपनी मनपसंद मिठाई की बुराई और नहीं सुन सकता था। उसे गुस्सा आ गया और वह अपने लिए फलूदा लेने चला गया।

 

Dinner

 

जब उसका नंबर आया, तब गुलाबी शरबत खत्म हो चुका था। उसने बिना शरबत के फलूदा खाया। वह बहुत दुखी था। घर जाकर वह बिस्तर पर बैठ गया और मुँह लटका कर खिड़की के बाहर देखने लगा। उसकी माँ ने पूछा, “क्या बात है सोनू? शादी से घर लौटते वक्त तुम बिल्कुल चुपचाप थे। क्या अल्का दीदी के साथ कोई झगड़ा हुआ है? बात क्या है बेटा?” सोनू ने सुबकते हुए माँ की गोद में सिर रख कर कहा, “मैंने दीदी से कहा था कि वह मेरे लिए फलूदा ले आए। पर वह तो अपने लिए सड़ा चाउ मिन लाने में व्यस्त थी। फिरउसने फलूदा को गंदा और चिपचिपा कहा। स्टॉल पर लोग एक-दूसरे को धक्का देते रहते हैं और छोटॆ बच्चों को अपनी प्लेट आसानी से नहीं मिलती। कतार में जब मेरा नंबर आया तब शरबत खत्म हो चुका था। दीदी मेरे साथ ऎसा कैसे कर सकती है? उसे पता है कि मुझे फलूदा बहुत पसंद है। वह बहुत मतलबी है।” माँ ने सोनू को गले लगाया और मुस्कुराते हुए कहा, “याद है कल तुमने कहा था कि मिट्टी जैसा भूरा रंग बहुत भद्दा होता है। क्या तुम सोच सकते हो, कि रोशन को कैसा लगा होगा?” उसने आगे और कुछ नहीं कहा और सोनू से आग्रह किया कि वह सो जाए।

 

[Contributed by ankit.dwivedi@clixindia.org, richa.pandey@clixindia.org on 21. März 2018 12:48:16]